सादे कपड़ो में फायरिंग पुलिस ड्यूटी का हिस्सा नहीं
पंजाब में 2015 के फर्जी मुठभेड़ मामले में कहा.अहम साक्ष्य नष्ट करना भी ड्यूटी का हिस्सा नहीं
Written By : Romi Kindo
नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि सादे कपड़ो में नागरिक वाहन को घेरकर सरकारी बन्दुक से फायरिंग करना पुलिस ड्यूटी का हिस्सा नहीं है। कोर्टने यह भी कहा कि अहम साक्ष्य को नष्ट भी ऑफिशियल ड्यूटी का हिस्सा नहीं और ऐसी स्तिथि में सीआरसीपी की धारा -197 के तहत मुकदमा चलाने के लिए पूर्व मंजूरी की जरुरत नहीं है।
शीर्ष अदालत ने कहा कि क्लाक ऑफ ऑफिशियल ड्यूटी का विस्तार उस कार्य तक नहीं हो सकता जिसका इरादा न्याय ही सुप्रीम कोर्ट ने फर्जी मुठभेड़ के आरोपित नौ पुलिसकर्मियों की अपील खरिज करते हुए उन्हें समन करने और उन पर आरोप तय करने को सही ठहराने वाले हाई कोर्ट के आदेश को बरकरार रखा।
इसके आलावा सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील स्वीकार करते हुए हाई कोर्ट के आदेश के उस अंश को रद्द कर दिया जिसमे सीआरपीसी की धारा - 197 के तहत मुकदमा चलाने की पूर्व मंजूरी नहीं लेने के आधार पर साक्ष्य नष्ट करने के आरोपित डीसीपी के विरुद्ध मामला रद्द कर दिया था। यह मामला 2015 में अमृतसर जिले के वेरका में 16 जून को हुए फर्जी एनकाउंटर का है।
यह आदेश 29 अप्रैल को जस्टिस विक्रमनाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने सीआरपीसी की धारा 197 के तहत मुकदमा चलाने के लिए मंजूरी की अनिवार्यता बतायें जाने आरोपित पुलिस अधिकारी की दलील ख़ारिज करते हुए दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता आरोपित पुलिसकर्मियों पर आरोप है कि उन्होंने सादे कपड़ो में एक नागरिक वाहन को घरकर उसमे सवार व्यक्ति पर मिलकर फायरिंग की।
इस कार्य और प्रकति का कानून बनाये रखने और प्रभावी तौर पर कानूनन गिरफ़्तारी की ड्यूटी से कोई तर्कसंगत सम्बन्ध है है। इस मामले आरोपित पुलिसकर्मियों का कहना था कि 2015 में गैंगस्टर शूटआउट के दौरान पुलिस ने अपने बचाव में गोली चलाई थी। इस घटना के बाद पुलिस ने आईपीसी की धारा- 307और आर्म्स एक्ट के तहत मामला दर्ज किया था और उसमे कहा था कि पुलिस ने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी।
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